रामजन्म से उल्लसित चैता और प्रिय के सान्निध्य में हुलसती चैती, दोनों जल्दी ही खेत-खलिहान के निष्ठुर सत्य से जूझेंगे। धीरे-धीरे चैत्र की बयार उग्र होने लगती है। फसल कटने के बाद सूने पड़े खेतों में धूल के बवंडर उठना शुरू हो जाते हैं।
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