ग्रामीण विकास के लिए जारी पैसों का कुछ हिस्सा भी देहातों में पहुंचा तो सीधे सच्चे लोग खुश हुए। कुछ उबड़-खाबड़ सड़कें ठीक हुर्इं। मिट्टी का तेल चार आने सस्ता हुआ। सस्ता कितना होना चाहिए, इस पर भी बहस छिड़ी। धीरे-धीरे शब्दों की नोंच हमारे व्यवहार में घुल मिल गई।
from Jansattaदुनिया मेरे आगे – Jansatta https://www.jansatta.com/duniya-mere-aage/jansatta-column-duniya-mere-aage-on-peace-in-noise/1039626/
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