यह परंपरा कब से चली आ रही है, इसका पता नहीं। सगुण भक्ति से लेकर निर्गुनिया संत, सभी की आराधना का प्रमुख माध्यम कीर्तन रहा है। गुरबानी के पाठ से लेकर बौद्ध धर्म के सामूहिक ‘ओं मणि पद्में हूं’ का पाठ इसी का एक रूप रहा है।
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