शब्दों का विसर्जन कहीं न कहीं वृहद भाषायी संपदा को हानि पहुंचाते हैं। यह विसर्जन जाने-अनजाने रोजमर्रा की बोलचाल में हम करते हैं। इसका असर हमें तत्काल नहीं नजर आता है और न ही हम इसका अंदाजा लगा पाते हैं कि इसका क्या खमियाजा भुगतना पड़ेगा।
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