घरों से सिलबट्टा बाहर हो गया है और महिलाओं के हाथ में वह ताकत नहीं रह गई कि वे सिलबट्टे पर कुछ पीस सकें। इससे ठंडई तैयार करने की विधा भी लुप्त होने के कगार पर है।
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