कभी ढाई साल की तो कभी सात साल की मासूम बच्चियां, सभी कमजोर तबकों की, जिनकी हत्या या बलात्कार के वक्त कुछ भी सोचना जरूरी नहीं समझा जाता। ठिकाना कोई भी हो सकता है- धार्मिक स्थान के रूप में मंदिर तो कहीं कचरा फेंकने की जगह।
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