1972 में निर्मल वर्मा की कहानी ‘माया दर्पण’ पर इसी नाम से फिल्म बना कर हिंदी सिनेमा में ‘फॉर्म’ के प्रति एकनिष्ठता को लेकर एक विमर्श खड़ा करने वाले कुमार शहानी, मणि कौल के सहपाठी थे।
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