स्कूल समाज का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है। विद्यालयी पाठ्यचर्या की राष्ट्रीय रूपरेखा 2005 में यह कहा गया है कि गांव में स्कूल नहीं होना चाहिए, बल्कि स्कूल में गांव होना चाहिए। इसके अलावा, यह दस्तावेज स्कूल के दरवाजों को समुदाय के लिए खोल दिए जाने की वकालत भी करता है।
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