स्कूल के दिनों में असेंबली या फिर खेल की कक्षा के वक्त विद्यार्थियों को पंक्तिबद्ध करने के पहले कहा जाता था कि हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से एक हाथ की दूरी बना कर खड़ा हो, ताकि सब स्वतंत्र और सहजता से अपना काम व्यस्थित रूप से कर सकें। यही सबक हमें फिर याद करने की जरूरत है। किसी के भी जीवन में हमें और किसी को भी अपने जीवन में इतना हस्तक्षेप नहीं करने देना चाहिए कि हमारी खुशियों और निजता पर उसका विपरीत प्रभाव पड़े।
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