परंपराओं के नाम पर रीति, कुरीतियों और अंधविश्वास को ढोते कई ऐसे प्रगतिवादी भी देखने में आ जाते हैं जो इनसे लिपटे भी हैं और इन्हें छोड़ने की आदर्शवादी बातें भी बनाते हैं।
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