जो कविता न सुंदर हो, न उसमें सुंदर शब्द हों, न सुंदर अर्थ हो और न उसमें समाज का हित हो, फिर कैसा काव्य, कैसी कविता? ऐसी कविता और ऐसा काव्यकर्म करने वाले कवि, दोनों की परवाह न होना तय है।
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