नई सदी में तो आगे निकलने, दूसरे से अपने को बेहतर दिखाने की स्पर्धा ऐसी हुई कि वह अहंकार, संकीर्णता और कुंठा की अनेक कहानियों के साथ हिंदी सिनेमा संस्कृति की पोल खोलती रही।
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