मेरे बचपन का हिस्सा कुछ कोलकता में बीता, कुछ उत्तर प्रदेश में पुरखों के गांव में। वहां की उन दिनों की चिड़ियों की गुंजार मैं भूला नहीं हूं। आज भी वह एक संगीत की तरह कानों में बजने लगती है। कभी-कभी सोचता हूं कितनी दूर चला आया हूं उस प्राकृतिक सुरम्य वातावरण से जो गांवों-शहरों में सहज ही उपलब्ध हुआ करता था।
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