टीवी देखना किसी का अपना निर्णय है। लेकिन एक सभ्य और मानवीय समाज के लिहाज से कोई मर्यादा होती है। जब हम खुद संयमित आचार-व्यवहार और मधुर भाषा को अपने जीवन में उतारेंगे, तभी हम आने वाली पीढ़ी को कुछ बेहतर दे सकते हैं। लेकिन सिर्फ मधुर भाषा पर्याप्त नहीं है। ‘मुंह में राम बगल में छुरी’ जैसी स्थिति भी हो सकती है।
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