मुझे याद है कि हमारी पीढ़ी में घरों में चार-छह बच्चे आम होते थे। अच्छे मध्यवर्ग के परिवारों में मां-बाप उन्हें स्कूलों, सरकारी स्कूलों में पढ़ाते थे। सब साथ मिल कर जो बनता था, खाते थे। आपस में लड़ते-झगड़ते, पर खेलते-कूदते थे।
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