ऋतु-परिवर्तन का सौंदर्य चिंतामुक्त मन को ही भाता है। ऋतुओं का सौंदर्य उनके परिवर्तन में है, इस मर्म को समझा था महाकवि कालिदास ने। उनकी पहली काव्य रचना मानी गई ‘ऋतुसंहार’ में ऋतुओं के परिवर्तन का अनूठा विवरण है। ऋतुओं का संधान कालिदास ने ग्रीष्म से आरंभ किया है।
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