प्रगतिशीलता की राहों और स्वतंत्र विचारों में मानसिक गुलामी सदैव रोड़ा बनती रही है। इस महान देश में हमारी सामाजिक और आर्थिक स्थिति से ही लोगों को आंका जाता रहा है। आगे भी ऐसा होता रहेगा, अगर हमने अपनी स्वतंत्र सोच को जातीय, धार्मिक, रूढ़िवादी चिथड़ों से बाहर नहीं निकाला।
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