ऐसी हिंसा जो ‘चिह्नित’ व्यक्ति या समूह के प्रति है, तब वह महज हिंसा नहीं है। दो विश्व युद्धों के बाद भी हर महाद्वीप किसी न किसी प्रकार की हिंसा में लिप्त है या शिकार है। अब अगर बात को भारतीय परिवेश में समझा जाए तो यहां हिंसा का जो इतिहास है, उसमें ‘चिह्नित’ समूह के प्रति हिंसा धार्मिक पुस्तकों, सामाजिक रीति-रिवाजों में एक तरह से नैतिक मान्यता प्राप्त रही है।
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