मेरी स्मृतियों में ऐसे तमाम मुसलिम चेहरे शामिल हैं, जो लक्का कबूतर पर जान छिड़कते थे, लोटन कबूतर पर लहालोट हो जाते थे। प्राय: सभी हज्जाम, रंगरेज, जुलाहे जैसे सर्वहारा परिवारों के थे, जबकि हमारे गाजीपुर में धनी शिया और पठान जमींदारों की कमी नहीं थी।
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