इन दिनों कई लोग कहते हैं कि ‘झूठी खबरें तो परेशानी का सबब हैं ही, जो प्रामाणिक सूचना स्रोत हैं, वहां भी एक साथ इतनी चीजें बताई जाती हैं कि समझ नहीं आता कि किससे रास्ता निकलता है।’ इस दुविधा में जीने के लिए कुछ हद तक लोग जिम्मेदार हो सकते हैं, लेकिन पूरी तरह नहीं।
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