मनुष्य तो स्वभाव से प्रकृति प्रेमी है, क्योंकि वह स्वयं भी इसी प्रकृति से जन्मा है। बस केवल अपने अहंकारवश उससे अलग हो गया है। प्रकृति ने सब कुछ तो दिया था, लेकिन जबसे इसके मन में उसे दास बनाने का जुनून सवार हुआ तभी से परिस्थितियां भी बिगड़ने लगीं। लेकिन विद्रोह भी तो दासत्व के भीतर से आता है न।
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