आज अंकों की होड़ में बच्चों की सृजनशीलता खत्म हो रही है। बच्चा सिर्फ पाठ्यपुस्तक की सामग्री तक सीमित कर दिया गया है। वह वही उत्तर देता है जो शिक्षक चाहते हैं। बच्चा क्या बनना चाहता है, इस पर परिवार ध्यान नहीं दे रहे हैं।
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