दरअसल, हमारी मानसिकता कुछ ऐसी बन चुकी है कि अगर घर में रखी कोई चीज मिल नहीं रही है तो वह गरीब घरेलू सहायक ने ही चुराई होगी और हमारी अंगुली बिना पलक झपके सीधे उनकी ओर उठ जाती है। तुर्रा यह कि वस्तु मिल गई, तब भी अमुक से माफी मांगना तो दूर मीठे दो बोल तक हमारी जुबान से नहीं निकलते, गलती स्वीकारना तो दूर की कौड़ी ठहरी।
from Jansattaदुनिया मेरे आगे – Jansatta https://ift.tt/2AzRHr1
from Jansattaदुनिया मेरे आगे – Jansatta https://ift.tt/2AzRHr1
Comments
Post a Comment