मैं जिन हालात में जी रहा था, उनमें वे बाल पत्रिकाएं मेरे लिए जीवन का आधार थीं। मैं उनके बिना अपना दिन-रात अधूरा समझता था। स्कूली किताबों के समांतर मैं उन्हीं में खोया रहता था। एक-एक शब्द ऐसे पढ़ता बारंबार, जैसे कोई प्यासा अपनी अतृप्त प्यास बुझा रहा हो।
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