पिछले चार दशकों में युवा पीढ़ी में मां-बाप के बिना रहने की ललक बढ़ी ही है, लेकिन बच्चों को जन्म और उनके लालन-पालन में अपने बुजुर्गों की जरूरत उन्हें भी महसूस होती है। मेरी पोती ने बताया कि दादी, मैं जब पति को आप दोनों (दादा-दादी) के संग साथ अपनी बातचीत और खेल, कहानियां सुनने के प्रसंग सुनाती हूं, वे बड़े प्रसन्न होते हैं। दादा-दादी के साथ और उनके बिना रहने वाले बच्चों के व्यक्तित्व में भिन्नता तो दिखती ही है। एक वर्ग ने अपने दादा-दादी से जीवन जीने की कला सीखी है।
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