अगर जीवन के हर एक क्षण को हम कुदरत का प्रसाद मान ले तो सारे तनाव एक क्षण ही में खत्म हो जाते हैं। जब हम यह स्वीकार कर लेते हैं, तो हमारा जीवन भी ‘प्रसादिक’ हो जाता है। इस विशाल ब्रह्मांड के कण-कण में आनंद छिपा हुआ है, लेकिन इंसान स्वार्थी बन कर सारा आनंद अकेले ही अपनी तिजोरी में भर लेना चाहता है।
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