सौ में से पचहत्तर के शिक्षित होने का दम भरने वाले भारत के हरेक नागरिक को इस कुसंस्कृति पर विचार करना होगा, क्योंकि इस नाकाबिल आचरण में सबकी भागीदारी समान रूप से है। शासन, प्रशासन के साथ-साथ हम सबको इस पर विचार करने और अपनी ओर से अपने-अपने हिस्से की भूमिका निभाने की जरूरत है।
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