हंसी में हम अपने भीतर के उल्लास को व्यक्त करते हैं। यह इसका सकारात्मक पक्ष है। कई बार आज के इस विषाक्त समय में हंसी हम दूसरों को नीचा दिखाने के लिए, उनकी किसी ‘कमी’ पर हंसते है या फिर उन पर व्यंग्य करने के लिए भी हंसते हैं। यह एक नकारात्मक भाव है जिसको बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। वास्तविक हंसी तो खिली धूप, बरसते बादल बहती नदी की तरह होती है जो सबको भिगो देती है।
from Jansattaदुनिया मेरे आगे – Jansatta https://ift.tt/2Z5pm5k
from Jansattaदुनिया मेरे आगे – Jansatta https://ift.tt/2Z5pm5k
Comments
Post a Comment