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दुनिया मेरे आगे: कहने का सलीका

न कहने के अपने तर्क हो सकते हैं। पर देखने की बात यह है कि न कैसे और क्यों कहा गया। इसके लिए स्थान विशेष का भी ध्यान रखा जाता है। जिसने स्थान और समय नहीं देखा, सामने वाले का सामाजिक रुतबा नहीं देखा, उसको विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। हम अपने समाज पर लाख गर्व करें, यही निकृष्ट सोच हमारी सामाजिक हकीकत है।

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