आज के उजाले और आने वाले कल की रोशनी में भी बीते हुए कल के अंधकार की स्मृति को महसूस कर हम अपनी जीवन-फिल्म को खुद ही निराशाजनक और दुखद बना डालते हैं। कभी-कभी तो गुजरे हुए पलों की पीड़ा हम पर इतनी हावी हो जाती है कि अवसाद सहित अन्य व्याधियां घेर लेती हैं।
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