जब भाषा संप्रेषण कम और हैसियत का माध्यम ज्यादा बन जाए तो उसके प्रति लोगों का नजरिया बदल जाता है। लोगों के वोटों तक पहुंचने के लिए हिंदी की सीढ़ी चाहिए और उनके द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों तक पहुंचने के लिए अंग्रेजी की।
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