ग्रामीण सहपाठियों के खेतों से सर्दी की दोपहरियों में मटर की घुघनी (घुघरी) का स्वाद लेकर, कड़ाहे पर खौलते गन्ने के रस से बिखरती ताजे गुड़ की सुगंध नथुनों में भर कर, शहर में अपने घर लौटते समय पांव बेमन से उठते थे। लेकिन ग्राम्य जीवन के कड़वे सत्य सतह के नीचे छिपे रह जाते थे।ग्रामीण सहपाठियों के खेतों से सर्दी की दोपहरियों में मटर की घुघनी (घुघरी) का स्वाद लेकर, कड़ाहे पर खौलते गन्ने के रस से बिखरती ताजे गुड़ की सुगंध नथुनों में भर कर, शहर में अपने घर लौटते समय पांव बेमन से उठते थे। लेकिन ग्राम्य जीवन के कड़वे सत्य सतह के नीचे छिपे रह जाते थे।
from Jansattaदुनिया मेरे आगे – Jansatta https://ift.tt/3jgtVBB
from Jansattaदुनिया मेरे आगे – Jansatta https://ift.tt/3jgtVBB
Comments
Post a Comment