महान दार्शनिक अरस्तू जैसे विद्वानों का मानना था कि सामुदायिक जीवन में पूर्ण सक्रिय भागीदारी और भूमिका निभाए बिना कोई परिपूर्ण मानव बनने की आशा नहीं कर सकता।
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