जिंदगी जब आंकड़ा हो जाती है तो उसे प्रतिशत में शीर्षक दे देना कितना दिलासा भरा लगता है। लेकिन भूख तो भूख है, मौत तो मौत है। उसे आंकड़ों और प्रतिशत में कब तक बांधेंगे!
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