बिना खड्ग और ढाल के आजादी दिलाने वाले साबरमती के संत का नाम तो आज भी राजनीति के मैदान चमकता दिखता है, लेकिन विचार के संदर्भ में देखें तो उनके जन्मदिन पर उनके विचारों को किसी रटे हुए वाक्य की तरह दोहराया जाता है और बाकी दिनों किसी बक्से में संभाल कर रख दिया जाता है, अगले साल के लिए। वे अंग्रेजों से निपट लिए थे।
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