न तो दो जोड़ी कपड़े होते थे और न ही भरपेट भोजन, लालू यादव ने आत्मकथा में लिखा- बचपन को यादकर भीग जाती हैं आंखें
लालू के मुताबिक सर्दियों में धान के पुआल से हम सबके लिए बिस्तर बनाया जाता था। माई हमारे लिए जूट के बोरे में पुआल, पुराने कपड़े और कपास भरकर कंबल बनाती थी ताकि हमें ठंड ना लगे।
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