एक दौर था, जब दीपावली आते ही स्थानीय हाट और बाजार मिट्टी के दीये और संबंधित अन्य आवश्यक सामग्रियों से पट जाते थे। मिट्टी के दीयों के जलने से न सिर्फ गौरवशाली संस्कृति का आभास होता था, बल्कि बरसात के बाद पनपने वाले कीड़े-मकोड़े का खात्मा भी हो जाता था। लेकिन समय बीतने के साथ इसमें भी बड़ा परिवर्तन आया है।
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