हाशिये के समूहों की चर्चा करते हुए अक्सर स्त्री, दलित, आदिवासी और अब किसान वर्ग की बात की जाती है, लेकिन इसी समाज में लैंगिक रूप से एक अलग समूह भी अपनी पहचान के संकट से जूझता रहा है। इसे अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। प्राकृतिक रूप से अपनी यौन विकृति के कारण समाज द्वारा इन्हें व्यंग्य, घृणा और तिरस्कार का शिकार होना पड़ता है।
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