चंद लोगों द्वारा छोटी-सी बात बिगाड़ कर कुछ ज्यादा ही दूर निकाल दी जाती है और बतंगड़ बना दी जाती है। भाषा को समझदारी से न बरतने के कारण बात की सही प्रवृत्ति और उचित अर्थ का कचूमर निकाल दिया जाता है। गलत मंचों पर बात के मनमाने मतलब निकालने वाले अपनी बात को मसाला लगा कर पकाने वाले कथित विशेषज्ञ आते हैं और सब कुछ, हर कुछ कहने के बाद भी कहते रहते हैं कि ‘हमको तो यह आदत है कि हम कुछ नहीं कहते’।
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