मौजूदा दौर में महामारी के संकट ने हमें जितनी आर्थिक चोट पहुंचाई है, उससे कई गुना ज्यादा हम मानसिक और भावनात्मक आघात झेल रहे हैं। अर्थव्यवस्था आज नहीं तो कल पटरी पर दौड़ेगी ही, लेकिन खौफ का जो मंजर मन में बैठ गया है और जिस तरह हमारी दिनचर्या से लेकर सामाजिक आचार-व्यवहार में बदलाव आ रहा है, उनकी पकड़, पता नहीं कब ढीली होगी।
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