दो अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी हरिजन में लिखते हैं, ‘ग्राम स्वराज की मेरी कल्पना यह है कि वह एक ऐसा पूर्ण प्रजातंत्र होगा जो अपनी जरूरतों के लिए पड़ोसी पर भी निर्भर नहीं करेगा।’
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