जब अंदर अंहकार पैदा हो जाता है तो स्वयं को सर्वशक्तिमान मानने की प्रवृत्ति आती है। ऐसा महसूस होने लगता है कि जैसे हमारी वजह से ही यह समाज और दुनिया चल रही है। ज्यों-ज्यों यह भ्रम बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों अंहकार भी बढ़ता जाता है।
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