बीएसपी सुप्रीमो मायावती आज भले ही उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुत बड़ा नाम हों, लेकिन उनका राजनीतिक जीवन बहुत मुश्किलों से होकर गुजरा था। मायावती को सबसे पहली बार प्रेस क्लब में एक भाषण के दौरान देखा गया था। यहां उन्होंने एक बड़े समाजवादी नेता के द्वारा ‘हरिजन’ शब्द इस्तेमाल करने पर आपत्ति जताई थी। यहां ‘बामसेफ’ के भी कुछ नेता मौजूद थे। बामसेफ उन दिनों बड़ा संगठन नहीं था और कांशीराम उसे चलाते थे।
ये बात कांशीराम तक पहुंची तो वह खुद मायावती के घर पहुंच गए। मायावती उन दिनों IAS की तैयारी कर रही थीं। उनके पिता भी चाहते थे कि उनकी बेटी सिविल सर्विस में आगे जाएं। कांशीराम अपने संगठन को आगे बढ़ाने पर विचार कर रहे थे। ‘द लल्लनटॉप’ के मुताबिक, कांशीराम घर में दाखिल हुए और मायावती को सक्रिय राजनीति में आने का ऑफर दिया। इसके पीछ की मुख्य वजह थी कि वह उत्तर प्रदेश से आती थीं और कांशीराम पंजाब के रहने वाले थे।
घर पहुंच गए थे कांशीराम: मायावती के सामने ऐसे में दो रास्ते थे। पहला था कि वो सिविल की तैयारी जारी रखें और आगे IAS अधिकारी बनें। जबकि दूसरा था- राजनीति में आ जाएं। कांशीराम ने उन्हें कहा था कि भले ही कोई कितना भी बड़ा अधिकारी बन जाए, लेकिन उसे मानना नेताओं का ऑर्डर ही होता है। सोच लो ऑर्डर देना है या ऑर्डर का पालन करना है। मायावती ने कुछ दिनों का समय मांगा और वह इस पर विचार करने लगीं।
मायावती पढ़ाई में काफी होशियार थीं। वह लॉ की पढ़ाई कर रही थीं। लेकिन मायावती ने राजनीति में जाने का फैसला कर लिया था। उनके पिता को जब ये बात पता चली तो वह काफी नाराज़ हुए और मायावती से घर छोड़ने या सिविल की तैयारी जारी रखने की शर्त रख दी।
मायावती को इसका अंदेशा पहले से था इसलिए वह अपनी तनख्वा से कुछ पैसे बचाकर रखती थीं। उन्होंने बिना कुछ सोचे बैग बांधा और घर से निकल गईं। इसके बाद वह दिल्ली के करोल बाग स्थित बामसेफ के दफ्तर पहुंचीं। यहीं से मायावती के राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई और उन्होंने कभी पीछे मुढ़कर नहीं देखा।
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