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सरदार पटेल के एक फैसले से इस कदर नाराज़ हो गए थे पंडित नेहरू, दे दी थी प्रधानमंत्री पद छोड़ने की धमकी

15 अगस्त 1947 को आजादी मिलने के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। वहीं, ‘लौह पुरुष’ के नाम से चर्चित सरदार वल्लभभाई पटेल पहले उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री। देश उस वक्त तमाम चुनौतियों से जूझ रहा था। सबसे बड़ी चुनौती देशी रियासतों का विलय था। पंडित नेहरू और पटेल एक के बाद एक चुनौतियों से पार पाते गए, लेकिन ऐसे मौके भी आए जब दोनों के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गए।

दोनों नेताओं के बीच पहला मतभेद राष्ट्रपति के नाम को लेकर हुआ। नेहरू चाहते थे कि पहले से ही गवर्नर जनरल के पद पर तैनात सी. राजगोपालचारी को देश का पहला राष्ट्रपति बना दिया जाए, लेकिन पटेल ने राजेंद्र प्रसाद का नाम आगे बढ़ा दिया और वो राष्ट्रपति बन भी गए। दोनों नेताओं के बीच मतभेद का दूसरा मौका साल 1950 में आया, जब कांग्रेस का नया अध्यक्ष चुना जाना था।

इस बार सरदार पटेल ने फिर अड़ंगा लगा दिया। उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए पुरुषोत्तम दास टंडन का नाम आगे कर दिया। टंडन प्रधानमंत्री के गृहनगर इलाहाबाद से ही ताल्लुक रखते थे और पार्टी के एक वर्ग में ठीक-ठाक पैठ थी।

क्यों विरोध में थे नेहरू? टंडन को पंडित नेहरू पहले से जानते थे और दोनों के बीच अच्छी दोस्ती भी थी। लेकिन दोनों के वैचारिक मतभेद भी उतना ही था। टंडन की गिनती कांग्रेस के दक्षिणपंथी धुरी के नेताओं में होती थी। चर्चित लेखक और इतिहासकार रामचंद्र गुहा अपनी किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में लिखते हैं, पुरुषोत्तम दास टंडन मुस्लिम विरोधी और सवर्ण मानसिकता रखते थे। जबकि नेहरू के विचार इसके बिल्कुल उलट थे।

यही कारण था कि नेहरू उन्हें अध्यक्ष की कुर्सी पर नहीं देखना चाहते थे। इसके बावजूद अगस्त 1950 में हुए चुनाव में पुरुषोत्तम दास टंडन आसानी से जीत गए। नेहरू इससे काफी निराश हुए। उनकी निराशा कांग्रेस के दिग्गज नेता सी. राजगोपालाचारी को लिखे एक पत्र में दिखती है। इस पत्र के बाद राजाजी ने पटेल और नेहरू के बीच समझौता करवाने का फैसला किया। पटेल नरम रुख अख्तियार करने को राजी हो गए, लेकिन कुछ समय बाद नेहरू की नाराजगी एक बार फिर खुलकर सामने आई।

खुलकर सामने आया नेहरू का गुस्सा: पंडित नेहरू कुछ वक्त शांत रहे लेकिन अचानक इस पर एक बयान जारी कर दिया। दो हफ्ते के गहन विचार के बाद उन्होंने इस्तीफा देने की धमकी तक दे डाली। 13 सितंबर 1950 को प्रेस को दिए एक वक्तव्य में उन्होंने टंडन के कांग्रेस अध्यक्ष बनने का खुलकर विरोध किया था। नेहरू की राय में ये कांग्रेस और भारत सरकार की जिम्मेदारी थी कि वह मुसलमानों को भारत में सुरक्षित महसूस करवाए। जबकि पटेल चाहते थे कि ये जिम्मेदारी खुद अल्पसंख्यक वर्ग ही उठाए।

रामचंद्र गुहा आगे लिखते हैं, अल्पसंख्यकों और कुछ दूसरे दार्शनिक मुद्दों पर नेहरू और पटेल कभी एक-दूसरे से सहमत नहीं हो सके। कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के बाद पटेल ने इस बात को ज्यादा तूल देना उचित नहीं समझा। पटेल ने मिलने आने वाले सभी कांग्रेसी नेताओं से कह दिया कि वे सब वही करें जो पंडित नेहरू चाहते हैं और इस विवाद पर ज्यादा ध्यान न दें।

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