संजय गांधी को दिल्ली में घुमा कर किया जाएगा जलील, मुझे नहीं मिलेगा मकान- जब ऐसी चिंता से परेशान थीं इंदिरा गांधी
भारत की जनता को देश के प्रधानमंत्रियों के बारे में जानने का बहुत मन होता है। राजनीति के किस्से तो कहीं न कहीं से मिल ही जाते हैं लेकिन फिर भी, सूचनाओं के उथल-पुथल के दौर में पक्की और सही जानकारी हासिल करना किसी शोध से कम नहीं है। लेकिन जब बात सत्तर के दशक की होती है तो इंदिरा गांधी का नाम सामने जरूर आता है। सत्तर का दशक इंदिरा गांधी का दशक था। इसी दशक में पाकिस्तान को घुटने के बल ला देने के बाद इंदिरा ने बांग्लादेश नाम का अलग देश बनवा दिया। यही वो दशक था इंदिरा गांधी को इस बात का भी डर सताने लगा की उन्हें रहने के लिए कोई मकान नहीं दिया जायेगा, आइये जानते हैं ऐसी कौन सी बात थी-
इंदिरा को जेल भेजना चाहते थे: स्वर्गीय चंद्रशेखर की पुस्तक ‘जीवन जैसा जिया’ के मुताबिक चंद्रशेखर का कहना था कि चुनाव में हराने के बाद इंदिरा गांधी को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए। चंद्रशेखर खुद इस बात में यकीन रखते थे कि चुनाव में हार जाना ही सबसे बड़ी सजा है। लेकिन कई लोग सरकार में इस राय के खिलाफ थे। खुद प्रधानमंत्री, गृहमंत्री वगैरह। ये लोग इंदिरा गांधी को जेल भेजना चाहते थे। चंद्रशेखर के मुताबिक जिस रात इंदिरा गांधी की गिरफ़्तारी हुई उस दिन वह शरद पवार के यहां रात्रिभोजन के लिए गए थे। वहीं सूचना मिली कि इंदिरा जी को गिरफ्तार कर लिया गया है।
इंदिरा के मन में डर: किताब में चंद्रेशखर के हवाले से लिखा गया है कि दूसरे दिन मजिस्ट्रेट ने बिना जमानत लिए इंदिरा जी को रिहा कर दिया। एक कमरे में मौजूद राजनारायण जी कह रहे थे, ‘इंदिरा को मीसा में बंद करा दीजिए’। खैर चंद्रशेखर बताते हैं यह बात लोकसभा चुनाव के तत्काल बाद की है; जब वह इंदिरा से मिलने गए, तब वह सफदरजंग की अपनी सरकारी कोठी में ही थीं। इंदिरा ने बताया, ‘लोग आकर बताते हैं कि संजय गांधी को जलील किया जाएगा। दिल्ली में घुमाया जाएगा। मुझे मकान नहीं मिलेगा। हमारी सुरक्षा खत्म कर दी जाएगी।’ यह सुनने के बाद चंद्रशेखर फ़ौरन मोरारजी के पास भागते हुए गए।
मोरारजी ने कहा नहीं देंगे मकान: चंद्रशेखर ने मोरारजी से पूछा क्या आप इंदिरा को मकान नहीं देंगे? इसपर मोररजी ने साफ़ तौर पर मना करते हुए कहा नहीं देंगे क्योंकि नियम में नहीं आता। उसके बाद दोनों में काफी बहस हुई, जाकिर हुसैन, लाल बहादुर शास्त्री, ललित नारायण मिश्र के परिवार को मकान मिला हुआ है उसका क्या? मोरारजी का कहना स्पष्ट था, उनका भी कैंसिल कर दूंगा।
इंदिरा के साथ खड़े थे संजय: इलाहाबाद हाई कोर्ट के 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द करने का फैसला सुना दिया। इसके बाद भी इंदिरा सत्ता की कुर्सी से उठने के लिए तैयार नहीं थी। संजय गांधी भी यही चाहते थे कि उनकी मां के हाथ से यह सत्ता जाये नहीं। उधर विपक्ष लगातार इंदिरा पर दबाव बना रहा था कि इसी बीच 25 जून की रात देश में आपातकाल लागू करने का फैसला कर लिया गया। आधी रात इंदिरा ने तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद से आपाताकाल के फैसले पर दस्तखत करवा लिया। जिसके बाद मानो कि देश में कोई भूचाल आ गया हो।
द वाशिंगटन पोस्ट पर घमासान: आपातकाल लागू होने के बाद एक भूचाल तो तब आया जब द वाशिंगटन पोस्ट में कथित तौर पर छपी एक खबर में दावा किया गया कि एक डिनर पार्टी के दौरान संजय गांधी ने अपनी मां इंदिरा पर थप्पड़ों की बरसात कर दी थी। बताया जाता है कि इसके बाद ही सरकार ने पांच घंटे के भीतर ये खबर लिखने वाले द वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार लुईस एम सिमंस को देश छोड़ने का आदेश भेज दिया था।
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