‘अमेरिकी टेक कंपनी और सर्च इंजन गूगल (Google) ने गूगल मैप्स (Google Maps) पर भारत के लिए अपनी तरह की पहली सुविधा का आगाज किया है। गुरुवार (27 जनवरी, 2022) को इसकी शुरुआत हुई, जिसमें यूजर अपने घरों का ‘प्लस कोड्स पता’ (‘Plus Codes’) जानने के लिए अपनी मौजूदा लोकेशन का यूज कर सकते हैं।
गूगल मैप्स की ‘प्रोडक्ट मैनेजर’ अमांडा बिशप ने बताया, ‘‘हम यूजर्स को सशक्त बनाना चाहते हैं। वे इसी क्रम में अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए ‘प्लस कोड’ पतों का यूज कर सकेंगे।’’ वह आगे बोलीं- हमने भारत में यह सुविधा एक महीने पहले शुरू की थी। हमें खुशी है कि हिंदुस्तान में तीन लाख से अधिक यूजर्स ने प्लस कोड्स के जरिए अपने घरों का पता खोज लिया।
बयान के मुताबिक, गूगल मैप्स पर ‘होम’ लोकेशन सेव करने पर भारतीय यूजर्स ‘अपनी मौजूदा लोकेशन का इस्तेमाल करें’ फीचर देख सकेंगे। इसमें प्लस कोड तैयार करने के लिए फोन की लोकेशन का यूज किया जाएगा। इसे बाद में यूजर अपने घर के पते के रूप में इस्तेमाल कर सकेंगे। अच्छी बात यह है कि इन पतों को शेयर भी किया जा सकेगा।
हालांकि, कंपनी ने कहा कि फिलहाल यह सुविधा केवल एंड्रॉयड (Android) प्लैटफॉर्म पर उपलब्ध है, जबकि इसे कुछ वक्त बाद आईओएस (iOS) प्लेटफॉर्म के लिए भी लाया जाएगा।
क्या हैं Plus Codes?: ‘प्लस कोड्स’ फ्री, खुले स्रोत से मिलने डिजिटल एड्रेसेस (Digital Addresses) होते हैं, जो उन जगहों की भी सटीक जानकारी दे सकते हैं जिनका सही आपैचारिक पता नहीं होता है। गली और इलाके के नाम के बजाए प्लस कोड लैटिट्यूड (अक्षांश) और लॉन्गिट्यूड (देशांतर) पर आधारित होते हैं। साथ ही इन्हें अक्षरों और संख्याओं की छोटी सीरीज के रूप में पेश किया जाता है।
प्लस कोड में किसी खात पते के लिए शहर या उसके नाम के साथ छह या सात अक्षरों, संख्याओं का एक सेट होता है। ऐसे में इससे सही जगह पर पहुंचा जा सकता है और यह दुकानों का पता लगाने और उन तक पहुंचने को भी आसान बनाते हैं। वैसे, प्लस कोड्स् की शुरुआत साल 2018 में हुई थी और तब से इसे देश में गैर सरकारी संगठनों (NGOs) और सरकारों ने बड़े पैमाने पर अपनाया है।
कैसे होगी प्लस कोड की पहचान?: गूगल की वेबसाइट के अनुसार, “प्लस कोड के जरिए लोग डिलीवरी हासिल कर सकते हैं। इमरजेंसी और सामाजिक सेवाओं पा सकते हैं या फिर बाकी लोगों को उन्हें खोजने में मदद कर सकते हैं।”
ये हैं प्लस कोड के फायदे: गूगल का कहना है कि ये कोड ओपन सोर्स और इस्तेमाल करने में काफी आसान हैं। विदेशों में जिस प्रकार के पारंपरिक कोड चलते हैं, ये उनके बरक्स बहुत छोटे हैं। ऐसे में उन्हें शेयर करना भी सरल है। रोचक बात है कि चाहे कोई ऑनलाइन हो या ऑफलाइन, प्लस कोड काम करते हैं। इनके लिए हर वक्त नेट कनेक्शन की जरूरत नहीं पड़ती। खासतौर पर भारत के लिहाज यह बड़ी बात है, क्योंकि अपने यहां कई बार मोबाइल कनेक्टिविटी प्रभावित होने की आशंका रहती है।
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