उन्नीस सौ साठ के दशक में पूरे भारत में फ्री स्टाइल कुश्तियों का बोलबाला था। दारा सिंह का जन्म 19 नवंबर 1928 को पंजाब, अमृतसर के धर्मुचक गांव में हुआ था। दारा सिंह कम उम्र में पढ़ाई छोड़कर खेती में लग गए थे। इसके बाद उन्होंने गैर-पेशेवर कुश्ती भी की और साल 1947 में, दारा अपने चाचा के साथ सिंगापुर चले गए। दारा सिंह का पूरा नाम दीदार सिंह रंधावा था। दारा, अपने जमाने के विश्व प्रसिद्ध फ्रीस्टाइल पहलवान रहे हैं।
सिंगापुर में पहलवान को किया था चारों खाने चित: भारत की आज़ादी के दौरान 1947 में सिंगापुर में ‘भारतीय स्टाइल’ की कुश्ती के मलेशियाई चैंपियन तरलोक सिंह से दारा सिंह का मुकाबला हुआ और इसी कुश्ती में तरलोक को चारों खाने चित करने के बाद से दारा सिंह का विजयी अभियान शुरू हुआ। कई देशों के पहलवानों को चित करने के बाद साल 1952 में भारत वापस लौट आए और सन 1954 में भारतीय कुश्ती चैंपियन (राष्ट्रीय चैंपियन) बने।
500 से ज्यादा पहलवानों को उनके देश में हराया: पाकिस्तान के माजिद अकरा, शाने अली और तारिक अली, जापान के रिकोडोजैन, यूरोपियन चैंपियन बिल रॉबिनसन, इंग्लैंड के चैंपियन पैट्रॉक समेत कई पहलवानों का गुरूर मिट्टी में मिलाने वाले दारा सिंह ने 500 से ज्यादा पहलवानों को हराया था। दारा सिंह की इस जीत में सबसे खास बात ये कि ज्यादातर पहलवानों को दारा सिंह ने उन्हीं के घर में जाकर चित किया था। दारा सिंह की कुश्ती कला को सलाम करने के लिए साल 1966 में रुस्तम-ए-पंजाब और साल 1978 में रुस्तम-ए-हिंद के खिताब से नवाजा गया।
29 मई के दिन बने थे विश्व चैंपियन: साल 1959 में पूर्व विश्व चैंपियन जार्ज गारडियांका को पराजित करके कामनवेल्थ की विश्व चैंपियनशिप जीती थी। 1968 में अमरीका के विश्व चैंपियन लाऊ थेज को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन बन गये। 29 मई 1968 को दारा सिंह ने लाऊ थेज को पराजित कर फ्रीस्टाइल कुश्ती के विश्व चैंपियन का ख़िताब अपने नाम करते हुए भारत के सिर पर विश्व विजेता का ताज रख दिया था। उन्होंने पचपन वर्ष की आयु तक पहलवानी की और पाँच सौ मुकाबलों में किसी एक में भी पराजय का मुंह नहीं देखा। साल 1983 में दारा सिंह ने अपने जीवन का अंतिम मुकाबला जीतने के पश्चात कुश्ती से सम्मानपूर्वक संन्यास ले लिया।
फिल्मों से लेकर राज्यसभा का तक सफर: दारा सिंह ने कई फिल्मों में अभिनय के अतिरिक्त निर्देशन व लेखन भी काम किया था। अपने समय की मशहूर अदाकारा मुमताज के साथ हिन्दी की स्टंट फिल्मों में उन्होंने काम करना शुरू किया। उन्हें टीवी धारावाहिक रामायण में हनुमान के अभिनय से अपार लोकप्रियता मिली। उन्होंने अपनी आत्मकथा मूलत: पंजाबी में लिखी थी जो साल 1993 में हिन्दी में भी प्रकाशित हुई। उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया था और अगस्त 2003 से अगस्त 2009 तक पूरे छ: वर्ष राज्य सभा के सांसद भी रहे थे।
एम.ए. पास लड़की से किया विवाह: साल 1937 में दारा सिंह ने बच्चन कौर से शादी, जिससे उनका एक बेटा प्रद्युमन रंधावा है, जो फिलहाल अभिनेता हैं। बाद में दोनों का तलाक हो गया। जब दारा सिंह पहलवानी के क्षेत्र में अपार लोकप्रियता प्राप्त कर चुके थे उन्हीं दिनों उन्होंने अपनी पसंद से दूसरा विवाह 11 मई 1961 को सुरजीत कौर नाम की एक एम.ए. पास लड़की से किया था। इस दंपति के दो बेटे, वीरेंद्र सिंह रंधावा (अभिनेता) और अमरीक सिंह रंधावा (फिल्म निर्माता) और तीन बेटियां, दीपा सिंह, कमल सिंह और लवलेन सिंह हैं। ।
दिल का दौरा पड़ने से हुआ था निधन: 7 जुलाई 2012 को दिल का दौरा पड़ने के बाद दारा सिंह को कोकिलाबेन धीरूभाई अम्बानी अस्पताल मुम्बई में भर्ती कराया गया, लेकिन जब 5 दिनों तक उनकी सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ तो उन्हें मुंबई स्थित निवास पर वापस ले आया गया; जहां 12 जुलाई, 2012 को सुबह साढ़े सात बजे उनका निधन हो गया।
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