प्रेम प्रकाश 2004 के बाद से दुनिया कितनी बदली है, इसका कोई एक जवाब शायद ही हो। पर अगर यह सवाल साइबर तंत्र को सामने रखकर पूछा जाए तो जवाब जरूर हर तरफ से यही होगा कि बदलाव का यह अनुभव अभूतपूर्व है। इस अनुभव का नया सिरा अब जहां खुलने जा रहा है वह कल्पना और तकनीक का एक ऐसा साझा रोमांच है जो आभास और यकीन के बीच तकरीबन एक नई दुनिया होगी। जहां लोग होंगे, संबंधों की गरमाहट होगी और साथ में होगा उपभोग और आनंद का अनंत सफर। ‘मेटावर्स’ नाम से आई इस तकनीक पर विशेष। कुछ साल पहले जो फेसबुक पूरी दुनिया में अपने वर्चस्ववादी रवैए के कारण ‘नेट न्यूट्रिलिटी’ की बहस के निशाने पर था, आज वह अभासी संसार को वास्तविकता के अहसास से भरने के तकनीकी पराक्रम को अपना भविष्य और रणनीति एक साथ घोषित कर रहा है। कमाल यह कि बाजार के खुले दरवाजे के साथ नई दुनिया को लेकर जो समझ हमें तीन दशक पीछे ले जाती है, मार्क जुकरबर्ग उस दुनिया में 2004 में दाखिल होते हैं। उनका यह दाखिला आज एक बड़े दखल में बदल चुका है। यह दखल एक तरफ जहां कई गणतंत्रों को अपनी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के बारे में फिक्रमंद कर रही है, वहीं यह खतरा भी है कि व
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